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यहां से हुई थी होली की शुरुआत, जिस पर्वत से प्रहलाद को फेंका, वो आज भी है

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जिस होली के त्यौहार को पूरा देश हर्षोल्लास से मनाता है. क्या कोई जानता है कि इस त्योहार की शुरुआत कहां से हुई थी? यदि नहीं जानते हैं तो हम आपको बताते हैं. इस त्योहार की शुरुआत बुंदेलखंड में झांसी के एरच से हुई है. ये कभी हिरण्यकश्यप की राजधानी हुआ करती थी. यहां पर होलिका भक्त प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर आग में बैठी थी, जिसमें होलिका जल गई थी लेकिन प्रहलाद बच गए थे. कहा जाता है तभी होली के पर्व की शुरुआत हुई थी.

झांसी मुख्यालय से लगभग 70 किलोमीटर दूर एरच कस्बा है. ये एरच वही इलाका है, जहां से होली की शुरुआत हुई थी. शास्त्रों और पुराणों के मुताबिक वर्तमान में झांसी जिले का एरच कस्बा सतयुग में एरिकच्छ के नाम से प्रसिद्ध था. यह एरिकच्छ दैत्यराज हिरण्यकश्यप की राजधानी थी. हिरण्यकश्यप को ये वरदान मिला था कि वो न तो दिन में मरेगा और न ही रात में. न उसे इंसान मार पाएगा और न ही जानवर. इसी वरदान को प्राप्त करने के बाद खुद को अमर समझने वाला हिरण्यकश्यप निरंकुश हो गया. लेकिन इस राक्षसराज के घर जन्म हुआ प्रहलाद का. भक्त प्रहलाद की नारायण भक्ति से परेशान होकर हिरण्यकश्यप ने उन्हें मरवाने के कई प्रयास किए. फिर भी प्रहलाद बच गए. आखिरकार हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को डिकोली पर्वत से नीचे फिंकवा दिया. डिकोली पर्वत और जिस स्थान पर प्रहलाद गिरे, वो आज भी मौजूद है. इसका जिक्र श्रीमद् भागवत पुराण के 9वें स्कन्ध में और झांसी गजेटियर पेज 339ए, 357 में मिलता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार हिरण्यकश्यप की बहन होलिका ने प्रहलाद को मारने की ठानी.

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होलिका के पास एक ऐसी चुनरी थी, जिसे पहनने पर वो आग के बीच बैठ सकती थी. जिसको ओढ़कर आग का कोई असर नहीं पड़ता था. होलिका वही चुनरी ओढ़ प्रहलाद को गोद में लेकर आग में बैठ गई, लेकिन भगवान की माया का असर ये हुआ कि हवा चली और चुनरी होलिका के ऊपर से उड़कर प्रहलाद पर आ गई. इस तरह प्रहलाद फिर बच गए और होलिका जल गई. इसके तुरंत बाद विष्णु भगवान ने नरसिंह के रूप में अवतार लिया और गौधुली बेला यानी न दिन न रात में अपने नाखूनों से डिकौली स्थित मंदिर की दहलीज पर हिरण्यकश्यप का वध कर दिया.

 

बुंदेलखंड ही नहीं बल्कि पूरे देश में होली के एक दिन पहले होलिका दहन की परंपरा चली आ रही है. एरच में आज भी इस परंपरा को स्थानीय निवासी फाग और गानों के साथ हर्षोल्लास से मनाते हैं.

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