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फिर दुहराई गई जे.सी. बोस की तिजोरी खोले जाने की मांग, उपेक्षा का लगाया गया आरोप

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गिरिडीह : वनस्पतियोों में भी प्राण होता है।पेड़ पौधे भी सांस लेते हैं,अपने गंभीर शोध से इसे साबित कर भारत को विश्व पटल पर अलग पहचान दिलाने वाले महान वैज्ञानिक सर जगदीश चंद्र बोस की आज पुण्यतिथि है। 30 नवंबर 1858 को उनका जन्म हुआ था और आज के दिन गिरिडीह के विज्ञान भवन में उन्होंने अंतिम सांस ली थी।

उन्हें गिरिडीह से बहुत लगाव था। वे विज्ञान भवन में रहकर अपने नये अविष्कारों और खोजों को मूर्त रूप देने का काम करते थे, वह भवन प्रशासनिक और राजनीतिक उपेक्षा से उबर नहीं पा रहा है। इस भवन से उनकी कई यादें जुड़ी हैं, उनकी कई निशानी भी यहां मौजूद हैं, जिन्हें सहेजने की पहल नहीं हो रही है।

अविष्कार से जुड़ी कई वस्तुएं हैं मौजूद

गिरिडीह शहर के झंडा मैदान के पास यह मकान अवस्थित है, जिसमें बोस रुकते थे। 1997 में उस भवन को सर जेसी बोस संग्रहालय विज्ञान भवन के रुप में परिवर्तित किया गया। विज्ञान भवन में बोस के आविष्कार सहित उनसे जुड़े कई चीजें मौजूद हैं, लेकिन इसकी सही से देख-रेख नहीं हो पा रहा है।

ठंडे बस्ते में पड़ा तत्कालीन राज्यपाल द्वारा की गई घोषणा

बता दें कि संग्रहालय का उद्घाटन करने पहुंचे बिहार के तत्कालीन राज्यपाल ए.आर किदवई ने इसका सौन्दर्यकर्ण कराने और संताल परगना के जगदीशपुर व गिरिडीह के बीच जेसी बोस औषधालय केंद्रीय विश्वविद्यालय बनाने की घोषणा की थी। इसके लिए जमीन उपलब्ध कराने का निर्देश पदाधिकारियों को दिया था, लेकिन यह मामला आज तक ठंडे बस्ते में पड़ा हुआ है।

वर्षो से उपेक्षित है संग्रहालय

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अविभाजीत बिहार में विज्ञान भवन को सरकार के विज्ञान एवं प्रौधौगिक विभाग ने अपने अधीन में रखा था, लेकिन झारखंड बनने के बाद इसे अब तक उक्त विभाग के अधीन नहीं लिया गया है, जिससे इसका विकास भी नहीं हो पा रहा है।

गिरिडीह से था विशेष लगाव

वैज्ञानिक सर बोस को गिरिडीह से विशेष लगाव था। वे यहां स्वास्थ्य लाभ लेने नियमित रूप से आते थे और अपने रिश्तेदार के यहां रुकते थे। गिरिडीह प्रवास के दौरान बोस पारसनाथ सहित जिले के अन्य क्षेत्रों में जाकर शोध कार्य करते थे। उनका निधन भी गिरिडीह के उसी मकान में हुआ था, जहां वे रुकते थे।

अनसुलझी रहस्य बनी हुई है सर बोस की तिजोरी

विज्ञान भवन में सर बोस की एक तिजोरी भी पड़ी है, जिसे अभी तक खोला नहीं जा सका है। तिजोरी खोलने के लिए पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के गिरिडीह आने का कार्यक्रम भी बना था। इसकी सारी तैयारी पूर्ण कर ली गई थी, लेकिन अंतिम समय में उनका कार्यक्रम रद्द हो गया, जिस कारण तिजोरी नहीं खोली जा सकी। तिजोरी में क्या है, यह आज भी रहस्य बना हुआ है। देखना होगा कब इस तिजोरी का राज खुल पाता है।

इस सम्बंध में पुण्यतिथि कार्यक्रम में उपस्थित सिनेट सदस्य रंजीत कुमार राय ने कहा कि महान वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस का हमारे गिरिडीह से गहरा नाता रहा है। उन्होंने अपने जीवन की अंतिम सांस गिरिडीह में ही लिये थे। जिस मकान में उन्होंने अंतिम सांस ली थी उस मकान में आज भी उनकी वह तिजोरी मौजूद है, जिसे आज तक खोला नहीं गया है। जेसी बोस के मकान को अब विज्ञान भवन बना दिया गया है। इसी में वो तिजोरी रखी है दो बार इसे खोलने का कार्यक्रम जिला प्रशासन ने निर्धारित किया लेकिन दोनों बार मिसाइल मैन और देश के प्रसिद्ध वैज्ञानिक व उस समय के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम आजाद साहब नहीं आ सकें नतीजा तिजोरी का रहस्य आज तक बरकरार है। उन्होंने सरकार और प्रशासन से मांग करते हुए कहा कि देश के महान वैज्ञानिक के नाम पर शिक्षण संस्थान शुरू कर गरीब बच्चों को बेहतर शिक्षा उपलब्ध कराया जाये।

भारत के पहले वैज्ञानिक शोधकर्त्ता सर जेसी बोस

मौके पर उपस्थित स्वयंसेवी संस्था के सुरेश शक्ति व रितेश चन्द्रा ने कहा कि आचार्य जगदीश चन्द्र बसु गिरिडीह की भूमि से जुड़े भारत के और विश्वप्रसिद्ध वैज्ञानिक थे। जिन्हें भौतिकी, जीवविज्ञान, वनस्पतिविज्ञान तथा पुरातत्व का गहरा ज्ञान था। वे पहले वैज्ञानिक थे जिन्होंने रेडियो और सूक्ष्म तरंगों की प्रकाशिकी पर कार्य किया। वनस्पति विज्ञान में उन्होनें कई महत्त्वपूर्ण खोजें की। साथ ही वे भारत के पहले वैज्ञानिक शोधकर्त्ता थे। बावजूद इसके सरकार व जिला प्रशासन द्वारा लगातार उनकी उपेक्षा की जा रही है।

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