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बिहार से शुरू हुआ था लोक आस्था का महापर्व छठ

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मंदिर में आज भी मौजूद हैं भगवान श्रीराम और माता सीता के पदचिन्ह।

मान्यता के मुताबिक वनवास और रावण का वध कर जब श्रीराम अयोध्या लौटे तो कुलगुरु वशिष्ट ने उन्हें मुग्दलपुरी (मुंगेर) में ऋषि मुग्दल के पास ब्रह्महत्या मुक्ति यज्ञ के लिए भेजा था। मुग्दल ऋषि ने वर्तमान कष्टहरणी गंगा घाट पर श्रीराम से ब्रह्महत्या मुक्ति यज्ञ करवाया। चूंकि महिलाएं इस यज्ञ में भाग नहीं ले सकती थी, इसलिए माता सीता को अपने आश्रम में रहने को कहा था।

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वहीं आश्रम में रहते हुए ऋषि मुग्दल के निर्देश पर माता जानकी ने अस्ताचलगामी सूर्य को पश्चिम दिशा की ओर और उदयीमान सूर्य को पूर्व दिशा में अर्घ्य दिया था। सीताचरण मंदिर के गर्भगृह में पश्चिम और पूर्व दिशा की ओर माता सीता के पैरों के निशान और सूप आदि के निशान अभी भी मौजूद हैं।

1972 में संत समागम के बाद सीताचरण मंदिर का निर्माण हुआथा। इस मंदिर का गर्भगृह छह महीने गंगा के गर्भ में ही समाया रहता है और छह महीने बाहर होता है। मान्यता ऐसी है कि यहां मंदिर के प्रांगण में छठ व्रत करने से लोगों की मनोकामनाएं पूर्ण होती है।

आप सभी की महापर्व छठ की ढेर सारी शुभकामनाएं।

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