Jivitputrika Vrat : जीवित्पुत्रिका या जितिया व्रत 18 सितंबर रविवार को किया जाएगा। सनातन धर्मावलंबियों में जिउतिया व्रत का खास महत्व है। आश्विन कृष्ण अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत करने का बड़ा माहात्म्य है। सुहागिन महिलाएं इस दिन निर्जला उपवास करती हैं। उत्तर पूर्वी राज्यों में यह व्रत बहुत लोकप्रिय है। यह व्रत मुख्य रूप से यूपी, बिहार और झारखंड के कई क्षेत्रों में किया जाता है। इस दिन संतान प्राप्ति एवं उसकी लंबी आयु के लिए महिलाएं व्रत रखती है। इस व्रत को जीवित्पुत्रिका व्रत के नाम से भी जाना जाता हैं।
ये रही है परंपरा
जिउतिया व्रत में सरगही या ओठगन की परंपरा भी है। इस व्रत में सतपुतिया की सब्जी का विशेष महत्व है। रात को बने अच्छे पकवान में से पितरों, चील, सियार, गाय और कुत्ता का अंश निकाला जाता है। सरगी में मिष्ठान आदि भी होता है। जीवित्पुत्रिका व्रत इस वर्ष 18 सितंबर को मनाया जाएगा ।
महाभारत के युद्ध में पिता की मौत के बाद अश्वत्थामा बहुत नाराज थे। सीने में बदले की भावना लिए वह पांडवों के शिविर में घुस गए। शिविर के अंदर पांच लोग सो रहे थे। अश्वत्थामा ने उन्हें पांडव समझकर मार डाला। कहा जाता है कि सभी द्रौपदी की पांच संतानें थीं। अर्जुन ने अश्वत्थामा को बंदी बनाकर उसकी दिव्य मणि छीन ली। क्रोध में आकर अश्वत्थामा ने अभिमन्यु की पत्नी के गर्भ में पल रहे बच्चे को मार डाला।
ऐसे में भगवान कृष्ण ने अपने सभी पुण्यों का फल उत्तरा की अजन्मी संतान को देकर उसके गर्भ में पल रहे बच्चे को पुन: जीवित कर दिया। भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से जीवित होने वाले इस बच्चे को जीवित्पुत्रिका नाम दिया गया। तभी से संतान की लंबी उम्र और मंगल कामना के लिए हर साल जिउतिया व्रत रखने की परंपरा को निभाया जाता है। यह व्रत छठ पर्व की तरह ही निर्जला और निराहार रह कर महिलाएं करती हैं।
जीवित्पुत्रिका व्रत के दिन मिथिला में मड़ुआ रोटी और मछली खाने की परंपरा है। जिउतिया व्रत से एक दिन पहले सप्तमी को मिथिलांचलवासियों में भोजन में मड़ुआ रोटी के साथ मछली भी खाने की परंपरा है। जिनके घर यह व्रत नहीं भी होता है उनके यहां भी मड़ुआ रोटी व मछली खाई जाती है। व्रत से एक दिन पहले आश्विन कृष्ण सप्तमी को व्रती महिलाएं भोजन में मड़ुआ की रोटी व नोनी की साग बनाकर खाती हैं।