Samridh Samachar
News portal with truth
- Sponsored -

- Sponsored -

बिना गोबर के क्यों अधूरी है गोवर्धन पूजा, कैसे शुरू हुई परंपरा?

279
Below feature image Mobile 320X100

हिन्दू धर्म में गोवर्धन पूजा एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे भगवान कृष्ण के गोवर्धन पर्वत को उठाने के रूप में मनाया जाता है. इस पूजा में गोबर का उपयोग एक विशेष महत्व रखता है. गोवर्धन पूजा बिना गोबर के अधूरी मानी जाती है. ऐसी मान्यता है कि गोबर को पवित्र माना जाता है. इसे घरों को साफ करने, पूजा करने और देवताओं को अर्पित करने में उपयोग किया जाता है. भगवान कृष्ण ने जब गोवर्धन पर्वत को उठाया था, तब उन्होंने इसे गोबर के रूप में भी देखा था. इसीलिए गोबर का उपयोग गोवर्धन पूजा में विशेष महत्व रखता है.

गोबर को प्रकृति का एक महत्वपूर्ण अंग माना जाता है. गोवर्धन पर्वत भी प्रकृति का ही एक रूप है. इसलिए गोबर का उपयोग करके प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त किया जाता है. गोबर का उपयोग खेतों में खाद के रूप में किया जाता है. गोवर्धन पूजा के दिन गोबर से बने गोवर्धन पर्वत का निर्माण करके कृषि के महत्व को दर्शाया जाता है.

कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 1 नवंबर, शाम 6 बजकर 16 मिनट पर शुरू होगी और 2 नवंबर, को रात 8 बजकर 21 मिनट पर समाप्त होगी. ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, गोवर्धन पूजा 2 नवंबर 2024 दिन शनिवार को ही की जाएगी. इस दिन गोवर्धन पूजा का मुहूर्त 2 नवंबर को शाम 6 बजकर 30 मिनट से लेकर 8 बजकर 45 मिनट तक है. गोवर्धन पूजा के लिए आपको 2 घंटा 45 मिनट का समय मिलेगा.

विज्ञापन

विज्ञापन

इन बातों का रखें ध्यान
बिना गोबर से बने गोवर्धन पर्वत की पूजा किए गोवर्धन पूजा अधूरी मानी जाती है. गोवर्धन पूजा के दिन, गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाकर उसके पास भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति रखी जाती है. ऐसी मान्यता है कि गोबर से बना पर्वत घर की सभी समस्याओं का समाधान करता है और सुख-समृद्धि का प्रतीक होता है.

गोवर्धन पूजा के दिन भगवान श्रीकृष्ण को अन्नकूट और छप्पन भोग लगाए जाते हैं.
गोवर्धन पूजा के दिन गोवर्धन पर्वत की सात बार परिक्रमा की जाती है.
परिक्रमा करते समय खील और बताशे अर्पित किए जाते हैं.
गोवर्धन पूजा को हमेशा घर परिवार, रिश्तेदार, या पड़ोसियों के साथ करना चाहिए.
गोवर्धन पूजा के दिन भगवान श्रीकृष्ण और गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है.
कैसे शुरू हुई परंपरा?
गोवर्धन पूजा की परंपरा की शुरुआत भगवान कृष्ण से जुड़ी एक पौराणिक कथा से हुई है. जब भगवान इंद्र ने ब्रजवासियों पर बारिश करके उन्हें परेशान किया, तब भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठाकर ब्रजवासियों को बचाया था. इस घटना के स्मरण में ही गोवर्धन पूजा की जाती है. गोबर से बने गोवर्धन पर्वत का निर्माण इस घटना का प्रतीक है. यह दर्शाता है कि भगवान कृष्ण ने प्रकृति की शक्ति का उपयोग करके ब्रजवासियों की रक्षा की थी. तभी ये परंपरा चली आ रही है.

गोवर्धन पूजा के दिन गोबर से एक छोटा सा पर्वत बनाया जाता है और उसे भगवान कृष्ण के रूप में पूजा जाता है. गोबर के दीपक जलाकर घरों को रोशन किया जाता है. कुछ लोग अपने शरीर पर गोबर का लेप लगाते हैं. गोबर से विभिन्न प्रकार की कलाकृतियां बनाई जाती हैं और उनकी पूजा की जाती है.

href="https://chat.whatsapp.com/IsDYM9bOenP372RPFWoEBv">

ADVERTISMENT

GRADEN VIEW SAMRIDH NEWS <>

Get real time updates directly on you device, subscribe now.

Before Author Box 300X250