तिसरी : गिरिडीह जिले के तिसरी प्रखंड अंतर्गत कानिचिहार गाँव का रहने वाला बड़कू मरांडी दक्षिण अफ्रीका के डरबन में होने वाले अंतराष्ट्रीय श्रम संगठन के पांचवे सम्मेलन में भारत के साथ – साथ पुरे झारखंड की आवाज बने l
डरबन(द. अफ्रीका)। दुनियाभर में बालश्रम के समूल उन्मूलन के मकसद से डरबन में अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के 5वें सम्मेलन का आगाज किया गया। 2025 तक बालश्रम के खात्मे का लक्ष्य रखा गया है। ऐसे में सम्मेलन की महत्ता और बढ़ जाती है। इसमें भी बाल मजदूरी करने वाले भारत के बच्चों ने भी अपनी आवाज बुलंद की और उपस्थित प्रतिनिधियों को बालश्रम के खात्मे के लिए कदम उठाने की प्रतिज्ञा दिलवाई। इन बच्चों में से तीन राजस्थान से और एक झारखंड से हैं। आज इन बच्चों में से कोई वकील है, कोई एमबीए कर रहा है तो कोई पुलिस में भर्ती होने के लिए प्रयासरत है।
झारखंड राज्य के बड़कू मरांडी की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। गिरिडीह जिले के गांव कानिचिहार का रहने वाला बड़कू जब 5-6 साल का था तभी उसके पिता गुजर गए थे। दो वक्त की रोटी के लिए वह अपनी मां राजीना किस्कु और भाई के साथ माइका अभ्रक चुनने का काम करने लगा। साल 2013 में काम करने के दौरान खदान में एक हादसा हो गया। इसमें मिट्टी के नीचे दबने के कारण बड़कू के एक दोस्त समेत दो लोगों की मौत हो गई जबकि बड़कू की एक आंख में गंभीर चोट आ गई। इसके चलते उसे आज भी कम दिखाई देता है।
सितंबर, 2013 में कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन ने कनिचियार गांव का चयन बाल मित्र ग्राम बनाने के लिए किया तो बड़कू को माइका चुनने के काम से हटाकर स्कूल में दाखिला करवा दिया। वह अपने परिवार का पहला और गांव के उन चुनिंदा लोगों में से है जिन्होंने 10वीं पास की है। यहां बाल पंचायत का चुनाव होने पर बड़कू को पंचायत का मुखिया चुना गया। फिलहाल वह बाल मित्र ग्राम के सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में काम कर रहा है।
बाल मित्र ग्राम, कैलाश सत्यार्थी का एक अभिनव प्रयोग है, जिसके जरिए गांवों में बाल मजदूरी के उन्मूलन, बाल विवाह पर रोक और बच्चों को स्कूल भेजने का कार्य किया जाता है।
रिपोर्ट – चन्दन भारती