Samridh Samachar
News portal with truth
- Sponsored -

- Sponsored -

85 साल के कोरोना पीड़ित बुजुर्ग ने 40 साल के युवक के लिए छोड़ा अपना बेड, कहा- ‘मैंने अपनी जिंदगी जी ली

148
Below feature image Mobile 320X100

‘मैंने अपनी जिंदगी जी ली है। मेरी उम्र अब 85 साल है। इस महिला का पति युवा है। उस पर परिवार की जिम्मेदारी है। इसलिए उसे मेरा बेड दे दिया जाए।’ महाराष्ट्र के नागपुर के एक बुजुर्ग नारायण भाऊराव दाभाडकर यह आग्रह कर अस्पताल से घर लौट आए। ताकि एक युवक को अस्पताल में बिस्तर मिल सके। बावजूद इसके कि दाभाडकर खुद कोरोना संक्रमित थे।

अस्पताल से लौटने के 3 दिन बाद ही उनका निधन हो गया। दाभाडकर कुछ दिन पहले ही कोरोना संक्रमित हुए थे। उनका ऑक्सीजन का स्तर 60 पहुंच गया था। उनके दामाद और बेटी उन्हें इंदिरा गांधी शासकीय अस्पताल ले गए। वहां बड़ी मशक्कत के बाद बेड मिला।

Saluja gold international school

विज्ञापन

इलाज की प्रकिया अभी चल रही थी कि एक महिला 40 साल के पति को अस्पताल लाई। अस्पताल ने भर्ती करने से मना कर दिया क्योंकि बेड खाली नहीं था। महिला बेड के लिए डॉक्टरों के सामने गिड़गिड़ाने लगी। तभी दाभाडकर ने अपना बेड उस महिला के पति को देने का अस्पताल प्रशासन से आग्रह कर दिया।
उनके आग्रह को देख अस्पताल प्रशासन ने उनसे एक कागज पर लिखवाया, ‘मैं अपना बेड दूसरे मरीज के लिए स्वेच्छा से खाली कर रहा हूं।’ दाभाडकर ने स्वीकृति पत्र भरा और घर लौट गए। उनकी तबीयत बिगड़ती गई और 3 दिन बाद उनका निधन हो गया। दाभाडकर की स्नेही शिवानी दाणी-वखरे ने बताया, ‘दाभाडकर बच्चों में चॉकलेट बांटते थे। इसलिए बच्चे उन्हें ‘चॉकलेट चाचा’ कहते थे।

वही चॉकलेट की मिठास उनके जीवन में थी। इसीलिए अंतिम समय भी वह सेवा के यज्ञ में समिधा बने। अपने योगदान से समाज के लिए उदाहरणात्मक मिठास छोड़ गए।’ शिवानी ने बताया कि दाभाडकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दूसरे सरसंघचालक माधव गोलवलकर के साथ काम कर चुके थे।

href="https://chat.whatsapp.com/IsDYM9bOenP372RPFWoEBv">

ADVERTISMENT

--------------------- विज्ञापन --------------------- --------------------- विज्ञापन ---------------------

Get real time updates directly on you device, subscribe now.

Before Author Box 300X250