Samridh Samachar
News portal with truth
- Sponsored -

- Sponsored -

25 जुलाई से शुरू हो रहा है सावन का महीना जो 22 अगस्त तक रहेगा, जानिए सोमवार के व्रत की सभी तिथियां*

156
Below feature image Mobile 320X100

गावां : सनातन धर्म की पौराणिक मान्यता के अनुसार सावन माह को भगवान शंकर का माह माना जाता है। इन माह में  सोमावर की तिथियां, का बहुत महत्व और पूजा विधि है। सनातन धर्म में सावन का बहुतअधिक महत्व है। श्रावण मास के हर दिन भगवान शिव की पूजा-अर्चना बड़े ही धूमधाम से की जाती है। हिन्दू धर्म की पौराणिक मान्यता के अनुसार सावन माह को भगवान शंकर का माह माना जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार इस साल श्रावण माह शुरू होते ही यानी 25 जुलाई से 22 अगस्त तक सावन का माह पड़ेगा। जिसके साथ ही इस साल कुल 4 सोमवार पड़ रहे हैं।
*जानिए तिथियां, महत्व और पूजा विधि*
सावन का महत्व हिंदू धर्म की पौराणिक मान्यता के अनुसार जब सनत कुमारों ने महादेव से उन्हें सावन माह प्रिय होने का कारण पूछा तो महादेव भगवान शिव ने बताया था कि जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति से शरीर त्याग किया था, उससे पहले देवी सती ने महादेव को हर जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया था। अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने पार्वती के नाम से हिमाचल और रानी मैना के घर में पुत्री के रूप में जन्म लिया। पार्वती ने युवावस्था के सावन महीने में निराहार रह कर कठोर व्रत किया और उन्हें प्रसन्न कर विवाह किया, जिसके बाद ही महादेव के लिए यह विशेष हो गया। सावन माह में पड़ने वाले सोमवार की तिथियां 25 जुलाई से सावन शुरू हो रहा है। इस बार चार सोमवारी है। चारों सोमवारी का काफी महत्‍व है। पहला सावन सोमवार 26 जुलाई, दूसरा सावन सोमवार 2 अगस्त, तीसरा सावन सोमवार 9 अगस्त, चौथा सावन सोमवार 16 अगस्त को पड़ता है। अचार्य सत्यम पांडेय उर्फ चंकी बाबा का कहना है कि सावन में भगवान शिव की पूजा सावन के माह में देवों के देव महादेव की विशेष रूप से पूजा की जाती है। इस दौरान पूजन की शुरूआत महादेव के अभिषेक के साथ की जाती है। सावन माह का अभिषेक का बहुत ही महत्वपूर्ण फल बतलाया गया है अभिषेक में महादेव को जल, दूध, दही, घी, शक्कर, शहद, गंगाजल, गन्ना रस आदि से स्नान कराया जाता है। अभिषेक के बाद बेलपत्र, समीपत्र, दूब, कुशा, कमल, नीलकमल, जंवाफूल कनेर, राई फूल आदि से शिवजी को प्रसन्न किया जाता है। इसके साथ की भोग के रूप में धतूरा, भांग और फल महादेव को चढ़ाया जाता है। ब्रह्म मुहूर्त में  स्नान करके ताजे बेलपत्र लाएं। पांच या सात साबुत बेलपत्र साफ पानी से धोएं और फिर उनमें चंदन छिड़कें या चंदन से ऊं नम: शिवाय लिखें। इसके बाद तांबे के लोटे (पानी का पात्र) में जल या गंगाजल भरें और उसमें कुछ साबुत और साफ चावल डालें। और अंत में लोटे के ऊपर बेलपत्र और पुष्पादि रखें। बेलपत्र और जल से भरा लोटा लेकर पास के शिव मंदिर में जाएं और वहां शिवलिंग का रुद्राभिषेक करें। रुद्राभिषेक के दौरान ऊं नम: शिवाय मंत्र का जाप या भगवान शिव को कोई अन्य मंत्र का जाप करें। रुद्राभिषेक के बाद समय होता मंदिर परिसर में ही शिवचालीसा, रुद्राष्टक और तांडव स्त्रोत का पाठ भी कर सकते हैं। मंदिर में पूजा करने बाद घर में पूजा-पाठ करें। घर में ही किसी पवित्र स्थान पर भगवान शिव की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
*इन मंत्रों का लें संकल्प लें चंकी बाबा* क्षेमस्थैर्यविजयारोग्यैश्वर्याभिवृद्धयर्थं सोमवार व्रतं करिष्ये’
इसके पश्चात निम्न मंत्र से ध्यान करें। ध्यायेन्नित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारुचंद्रावतंसं रत्नाकल्पोज्ज्वलांग परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम्‌।
पद्मासीनं समंतात् स्तुतममरगणैर्व्याघ्रकृत्तिं वसानं विश्वाद्यं विश्ववंद्यं निखिलभयहरं पंचवक्त्रं त्रिनेत्रम्‌ ध्यान के पश्चात ‘ॐ नमः शिवाय’ से शिवजी का तथा ‘ ॐ शिवाय नमः ‘ से पार्वतीजी का षोडशोपचार पूजन करें। पूजन के पश्चात व्रत कथा सुनें। उसके बाद आरती कर प्रसाद वितरण करें।

href="https://chat.whatsapp.com/IsDYM9bOenP372RPFWoEBv">

ADVERTISMENT

--------------------- विज्ञापन --------------------- --------------------- विज्ञापन ---------------------

Get real time updates directly on you device, subscribe now.

Before Author Box 300X250