लॉकडाउन पर सुमित कुमार गौतम की कविता “वक़्त कितना भी बुरा हो गुजर जायेगा…”
लॉकडाउन पर सुमित कुमार गौतम की कविता "वक़्त कितना भी बुरा हो गुजर जाता है..."लॉकडाउन पर सुमित कुमार गौतम की कविता "वक़्त कितना भी बुरा हो गुजर जाता है..."
Gepostet von Samridh Samachar am Montag, 6. April 2020
कोई भी त्रासदी मानवता के श्वेत और श्याम दोनों पक्षों को उभार कर रख देता है। इस संक्रमण काल ने जहाँ एक ओर परेशानी, भय, अनिश्चतताओं को जन्म दिया है वहीं दूसरी ओर ऐसी खबरें भी खुशबू जैसी फिजा में घुल रही हैं जिनसे उम्मीद बढ़ती और बँधती है। उदाहरण के तौर पर चिकित्सा कर्मियों, पुलिसकर्मियों, बैंकरों, सब्जीवालों, किराना वालों आदि की आकस्मिक सेवा हो या पैदल लौटते मजदूरों के खाने का प्रबंध करते आम लोग !
इस संवेदनशील समय में जब पूरी दुनिया थम गई है और देश बन्द है इस दौरान कई लोग अपनी रचनात्मकता के माध्यम से न सिर्फ समय का सार्थक सदुपयोग कर रहे हैं, बल्कि लोगों में हौसला भी भर रहे हैं। इसी कड़ी में डी. डी. एम नाबार्ड, गिरिडीह के अनुज सुमित कुमार गौतम ने एक कविता लिखी है जो इस बात पर जोर देती है कि वक़्त कितना भी बुरा हो गुजर जाता है। साथ ही ये ऐसा वक़्त है जब हमें ठहर कर, सत्य से मुंह मोड़े बिना सोचना चाहिए कि समस्त मानव प्रजाति कैसे इस आपदा से निपट कर बेहतर, ज्यादा संवेदनशील, वैज्ञानिक सोच वाली और मजबूत हो सकती है।
सुमित नेतरहाट विद्यालय और आई.आई.टी(आई.एस. एम) धनबाद में अध्ययनरत होने के दौरान ही विभिन्न साहित्यिक गतिविधियों में लीन रहें हैं एवं कई राज्यस्तरीय एवं महाविद्यालय स्तर की प्रतियोगिताओं में पुरस्कार भी जीत चुके हैं। उनकी कविता को सोशल मीडिया पर काफ़ी सराहा जा रहा है।