आज है तुलसी विवाह का पर्व और साथ ही देवउठनी एकादशी का भी है व्रत

गिरिडीह: आज तुलसी विवाह और देवउठनी एकादशी है. कहते हैं कि कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की एकादशी को श्रीहरि चतुर्मास की निद्रा से जागते हैं, इसीलिए इस एकादशी को देवउठनी एकादशी भी कहते हैं. इस दिन से ही हिन्दू धर्म में शुभ कार्य जैसे विवाह (Marriage) आदि शुरू हो जाते हैं. देवउठनी एकादशी के दिन ही भगवान विष्णु के स्वरूप शालीग्राम का देवी तुलसी से विवाह होने की परंपरा भी है. माना जाता है कि जो भक्त देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह का अनुष्ठान करता है उसे कन्यादान के बराबर पुण्य मिलता है. वहीं एकादशी व्रत को लेकर मान्यता है कि साल के सभी 24 एकादशी व्रत करने पर लोगों को मोक्ष की प्राप्ति होती है.

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार माता तुलसी ने भगवान विष्णु को नाराज होकर श्राम दे दिया था कि तुम काला पत्थर बन जाओगे. इसी श्राप की मुक्ति के लिए भगवान ने शालीग्राम पत्थर के रूप में अवतार लिया और तुलसी से विवाह कर लिया. वहीं तुलसी को माता लक्ष्मी का अवतार माना जाता है. हालांकि कई लोग तुलसी विवाह एकादशी को करते है तो कहीं द्वादशी के दिन तुलसी विवाह होता है. ऐसे में एकादशी और द्वादशी दोनों तिथियों का समय तुलसी विवाह के लिए तय किया गया है.

एकादशी तिथि और तुलसी विवाह का समय-एकादशी तिथि प्रारंभ- 25 नवंबर 2020, बुधवार को सुबह 2.42 बजे से
एकादशी तिथि समाप्त- 26 नवंबर 2020, गुरुवार को सुबह 5.10 बजे तक
द्वादशी तिथि प्रारंभ- 26 नवंबर 2020, गुरुवार को सुबह 5.10 बजे से
द्वादशी तिथि समाप्त- 27 नवंबर 2020, शुक्रवार को सुबह 7.46 बजे तक

एकादशी व्रत और पूजा विधि-

-एकादशी व्रत के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि करें और व्रत का संकल्प लें.
-इसके बाद भगवान विष्णु की अराधना करें.
-भगवान विष्णु के सामने दीप-धूप जलाएं. फिर उन्हें फल, फूल और भोग अर्पित करें.
-मान्यता है कि एकादशी के दिन भगवान विष्णु को तुलसी जरूर अर्पित करनी चाहिए.
-शाम को विष्णु जी की अराधना करते हुए विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करें.
-एकादशी के दिन पूर्व संध्या को व्रती को सिर्फ सात्विक भोजन करना चाहिए.
-एकादशी के दिन व्रत के दौरान अन्न का सेवन नहीं किया जाता है.
-एकादशी के दिन चावल का सेवन वर्जित है.
-एकादशी का व्रत खोलने के बाद ब्राहम्णों को दान-दक्षिणा जरूर दें.