जानें आज से पितरों के दिन, श्राद्ध की तिथियां, महत्व और कथा |

सनातन हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व होता है। पितृ पक्ष को हम श्राद्ध पक्ष के नाम से भी जानते है। पितृ पक्ष में पितरों का श्राद्ध और तर्पण किया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पितृ पक्ष के दौरान पितर संबंधित कार्य करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और देवतागण भी प्रसन्न होते हैं । इस पक्ष में विधि- विधान से पितर संबंधित कार्य करने से पितरों का आर्शावाद प्राप्त होता है। पितृ पक्ष के दौरान पूर्वजों का तर्पण नहीं करने पर पितृदोष लगता है। पितृ पक्ष में पितरों को याद कर उन्हें सम्मान प्रदान किया जाता है। पितृ पक्ष यानि श्राद्ध का समापन अमावस्या की तिथि में किया जाता है। इस दिन को किया जाने वाला श्राद्ध सर्वपित्रू अमावस्या या महालय अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है। पितृ पक्ष में महालय अमावस्या सबसे महत्वपूर्ण माना गया है।ऐसे में चलिए जानते हैं पितृ पक्ष की शुरुआत कब से हो रही है,क्या है महत्व, विधि और पौराणिक कथा-

पितृ पक्ष का महत्व

हमारे धर्म शास्त्रों में ऐसा कहा गया है कि देह त्याग करने के पश्चात आत्मा की शांति के लिए पितृ पक्ष में तर्पण किया जाना आवश्यक होता है। इस क्रिया को श्राद्ध भी कहा जाता है। श्राद्ध का अर्थ होता है, श्रद्धा पूर्वक। ऐसा कहा जा है कि पितृ पक्ष यानि श्राद्ध के दिनों में मृत्युलोक के देवता यमराज पूर्वजों की आत्मा को मुक्ति देते हैं ताकि वे अपने परिजनों के यहां जाकर तर्पण ग्रहण कर सकें। पितृ पक्ष में पितरों का तर्पण करने से पितृ दोष दूर होता है। जिस व्यक्ति की जन्म कुंडली में पितृ दोष होता है उसे जीवन में परेशानियों का सामना करना पड़ता है। मान सम्मान प्राप्त नहीं होता है, धन की बचत नहीं होती है। साथ ही रोग और बाधाएं उनका पीछा नहीं छोड़ती हैं। इसलिए पितृ पक्ष में पितरों का तर्पण करने से पितृ दोष दूर होता है और परेशानियों से मुक्ति मिलती है।

जाने कब से शुरु हो रहा है पितृ पक्ष

हिंदू पंचाग के अनुसार इस साल पितृ पक्ष 20 सितंबर 2021 से शुरू हो रहे हैं और समापन 6 अक्टूबर 2021 को होगा। आपको बता दें कि इस साल 26 सितंबर को पितृ पक्ष तिथि नहीं है।

पितृ पक्ष 2021 की तिथियां

पूर्णिमा श्राद्ध – 20 सितंबर

प्रतिपदा श्राद्ध – 21 सितंबर

द्वितीया श्राद्ध – 22 सितंबर

तृतीया श्राद्ध – 23 सितंबर

चतुर्थी श्राद्ध – 24 सितंबर

पंचमी श्राद्ध – 25 सितंबर

षष्ठी श्राद्ध – 27 सितंबर

सप्तमी श्राद्ध – 28 सितंबर

अष्टमी श्राद्ध- 29 सितंबर

नवमी श्राद्ध – 30 सितंबर

दशमी श्राद्ध – 1 अक्तूबर

एकादशी श्राद्ध – 2 अक्टूबर

द्वादशी श्राद्ध- 3 अक्टूबर

त्रयोदशी श्राद्ध – 4 अक्टूबर

चतुर्दशी श्राद्ध- 5 अक्टूबर

पितृ पक्ष की पौराणिक कथा

कहा जाता है कि जब महाभारत के युद्ध में दानवीर कर्ण का निधन हो गया और उनकी आत्मा स्वर्ग पहुंच गई, तो उन्हें नियमित भोजन की बजाय खाने के लिए सोना और गहने दिए गए। इस बात से निराश होकर कर्ण की आत्मा ने इंद्र देव से इसका कारण पूछा। तब इंद्र ने कर्ण को बताया कि आपने अपने पूरे जीवन में सोने के आभूषणों को दूसरों को दान किया लेकिन कभी भी अपने पूर्वजों को नहीं दिया। तब कर्ण ने उत्तर दिया कि वह अपने पूर्वजों के बारे में नहीं जानता है और उसे सुनने के बाद, भगवान इंद्र ने उसे 15 दिनों की अवधि के लिए पृथ्वी पर वापस जाने की अनुमति दी जिससे कि वह अपने पूर्वजों को भोजन दान कर सके। इसी 15 दिन की अवधि को पितृ पक्ष के रूप में जाना और मनाया जाता है।