भेलवाघाटी नरसंहार के 18 साल, खौफनाक मंजर को याद कर आज भी कांप उठती है लोगों की रूह

गिरिडीह : बहुचर्चित भेलवाघाटी नरसंहार के 18 साल बीत गए है. लेकिन आज तक वहां के लोग उस खौफ़नाक मंजर को भूल नहीं पाए हैं. 11 सितंबर 2005 की काली रात को याद करते ही इलाके में लोगों की रोंगटे खड़ी हो जाती है. 11 सितंबर 2005 की वह काली रात थी जिस दिन नक्सलियों ने एक या दो नहीं बल्कि 17 निर्दोष लोगों को गांव के बीच चौराहे पर जन अदालत लगाकर कत्लेआम कर दिया था. नरसंहार में मारे गए ग्रामीणों का कसूर सिर्फ इतना था वे लोग ग्राम रक्षा दल के सदस्य थे. इस दर्दनाक घटना के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा, पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी, सुदेश माहतो सहित राज्य के कई आलाधिकारी भेलवाघाटी गांव पहुंच कर गांव और मृतक के परिजनों को ढाई लाख मुआवजा, एक नौकरी, आवास, बच्चों को मुफ्त शिक्षा समेत उक्त गांव के लिए कई घोषणाएं की गई थी, लेकिन आज तक मृतक परिजनों को ढाई लाख की जगह सिर्फ एक एक लाख की राशि और एक एक नौकरी दी गई बाकी सारी घोषणाएं आज भी अधूरी है. इस बाबत मृतक मंसूर अंसारी के पुत्र गुलाम मुस्तफा और पत्नी मजीदा बीबी ने बताया परिवार में तीन लोगों की नक्सलियों ने बर्बरता पूर्वक हत्या कर दी थी. इतना ही नहीं घर को बारूद से उड़ा दिया था. जिस घर के लिए सरकार दस लाख मुआवजा देने की बात कही थी, लेकिन 18 साल बीत गए सिर्फ एक एक लाख नकद और एक एक नौकरी के अलावे कुछ नहीं मिला. वहीं सीतो हाजरा,गंगिया देवी,कार्तिक हाजरा,खिरिया देवी,समसुद्दीन अंसारी आदि ने बताया कि इस नरसंहार के बाद जब लोग इस गांव को छोड़कर पलायन करने लगे तो सरकार भेलवाघाटी ग्रामीणों से वादा किया था कि पलायन मत कीजिए अपलोगों के लिए सारी मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएगी, लेकिन 18 साल बीत जाने बाद भी कई वादे अधूरे पड़े हुए हैं.

घटना के बाद से आज तक कोई नेता मंत्री आज तक सुधि लेने भी नहीं आए हैं. आज भी यहां के लोग पेयजल समस्या से जूझ रहे हैं गांव के अंदर जितने भी कुएं है इस बरसात के मौसम में भी सुखी पड़ी हुई नहाने एवं कपड़े धोने के लिए 4 किलोमीटर दूर बिहार बॉर्डर पर स्थित नदी जाना पड़ता है. सरकार इस गांव को आदर्श गांव बनाने की घोषणा की थी किन्तु इस विषय को लेकर आज तक कोई चर्चा भी नहीं हुई है. दर्द के 18 वर्ष गुजर जाने के बाद कई सरकारें बदली, लेकिन अब तक वादें पूरी नहीं हुई. देखना होगा आखिर कब नक्सलियों के दिए इस दर्द पर सरकार पूरी तरह से मरहम लगा सकती है. देवरी से मंटू राम की खास रिपोर्ट.